ढाई ढाई साल की पारी में किसका पलड़ा भारी। चिंगारी लगा रही विपक्ष को आग लगने का इंतजार:-

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प्रदेश में कथित ढाई-ढाई साल के सत्ता के खिल का जिन्न बाहर आने लगा है। एक पक्ष जहां इस थ्योरी पर अड़ा हुआ है वहीं दूसरे पक्ष इस थ्योरी को खारिज कर रहा है। सीधे सवालों का जवाब भी इस तरह से दिया जा रहा है कि विपक्ष उसे लपक ले। ऐसे में लोगों को लग रहा है कि मध्यप्रदेश, राजस्थान के बाद जल्द ही छ्त्तीसगढ़ में भी सत्ता की जंग का नजारा दिख सकता है।

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Tanay

दोनों तरफ से बयानों की तलवारें खींच गई है। ऐसे में लोग कहने लगे हैं कि क्या यह संभावित सत्ता की जंग का रिहर्सल है? इन सवालों का जवाब इतना सीधा भी नहीं है लेकिन साफ भी नहीं। बयानों में तल्खी जरूर है लेकिन ढंका-छुपा। लेकिन अंदरखाने में जो कुछ भी पक रहा है उसकी महक बाहर तक आ रही है। बयानों के दौर के बाद एक पक्ष दिल्ली में है तो दूसरा प्रदेश में मोर्चा संभाल रहे हैं।

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यह मामला फिर से तब उछाल जब कुछ दिन पहले प्रदेश के स्वास्थमंत्री TS सिंहदेव से यह सवाल पूछा गया कि प्रदेश में कांग्रेस शासन के ढाई साल होम वाला है तो क्या ढाई साल के बाद प्रदेश में मुख्यमंत्री पद में परिवर्तन होगा ? तब TS बाबा का जवाब सीधा होने के बजाय घुमावदार था यही कारण है कि इसके राजनीतिक मायने निकाले जाने लगे। उन्होंने उस सवाल का जवाब देते हुए कहा था कि अर्जुन सिंह दो दिन के लिए भी मुख्यमंत्री बनाये गए थे, यह सब आलाकमान के ऊपर निर्भर है।

TS बाबा के इस जवाब के बाद भाजपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री डॉ रमन सिंह, नेता प्रतिपक्ष धरमलाल कौशिक ने उनके बयान के आधार पर यह सवाल उठा दिया कि कांग्रेस आलाकमान को यह साफ करना चाहिए कि भूपेश बघेल कब तक मुख्यमंत्री बने रहेंगे? क्योंकि ऐसे बयानों से प्रदेश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल बना हुआ है।

अब बारी मुख्यमंत्री के जवाब की थी, उनसे जब यह सवाल पूछा गया तो उन्होंने कहा कि ढाई-ढाई साल की पारी वाली बात वहां होती है जहां गठबंधन की सरकार हो। भाजपा पर व्यंग कास्ट हुए यह भी कहा कि बिल्ली के भाग्य से छींका नहीं टूटने वाला। हालांकि उन्होंने भी कहा कि यदि आलाकमान कहेगी वे तुरंत इस्तीफा दे देंगे।

मामला जो भी हो लेकिन बयानों के आधार पर लोगों को यह डर सताने लगा है कि कहीं छ्त्तीसगढ़ भी मध्यप्रदेश या राजस्थान की गति को न प्राप्त कर ले। हमने देखा है की कैसे ज्योतिरादित्य सिंधिया ने रातोंरात पाला बदलकर कांग्रेस को सत्ता से बेदखल करवा दिया और सचिन पायलट के कारण राजस्थान सरकार के दिनों का आदेशों के भंवर में फंसी रही।

हालांकि छ्त्तीसगढ़ की 90 में से 70 विधानसभा पर कांग्रेस का कब्जा है, सत्ता संघर्ष के लिए कमसे कम 26 विधायकों का होना जरूरी है और लगता नहीं कि यहां इतनी संख्या में विधायक पाला बदल सकें। यहां हमेशा सत्ता का जोर रहता है, अशोक गहलोत की तरह भूपेश बघेल को भी राजनीति का मंजा हुआ खिलाड़ी माना जाता है और दाऊ काफी चौकन्ने भी नजर आ रहे हैं लेकिन क्रिकेट और राजनीति का क्या भरोसा।

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