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केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों के विरोध में चल रहे किसानों के आंदोलन के बीच रिलायंस समूह ने बार बार सफाई दी है कि उसका खेती-किसानी से कोई लेना देना नहीं है। कंपनी ने प्रेस बयान जारी करके कहा कि वह किसानों से सीधे अनाज नहीं खरीदता है और न ऐसा करने का उसका भविष्य में कोई इरादा है। लेकिन एक तरफ यह सफाई और दूसरी ओर किसानों से अनाज की खरीद भी शुरू हो गई है। रिलायंस ने अनाज खरीद का जोड़-तोड़, मैनिपुलेशन शुरू कर दिया है और इसके लिए उसने सबसे पहले भाजपा शासित राज्य कर्नाटक को चुना है। रिलायंस ने अपना खेल बिल्कुल उसी अंदाज में शुरू किया है, जिस अंदाज में उसने जियो का खेल शुरू किया था। आंदोलन कर रहे किसान, जिसका अंदेशा जता रहे थे वह सही होता नजर आ रहा है।
रिलायंस समूह ने कर्नाटक के रायचूर जिले में किसानों ने एक हजार क्विटंल धान खरीदा है और उसके लिए केंद्र सरकार की ओर से तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी से ज्यादा कीमत दी है। यह रिलायंस की आजमाई हुई रणनीति है। जैसे उसने जियो लांच किया तो सेवा की कीमत सबसे सस्ती रखी वैसे ही धान खरीद शुरू की तो कीमत एमएसपी से ज्यादा दी। मीडिया में यह खबर इसी अंदाज में आई है कि रिलायंस ने एमएसपी से ज्यादा कीमत पर धान खरीदी।
रिलायंस ने कर्नाटक के रायचूर में सोना मसूरी धान साढ़े 19 सौ रुपए क्विंटल की दर पर खरीदा है, जिसकी एमएसपी 1,868 रुपए क्विंटल है। यानी रिलायंस ने एमएसपी से 82 रुपए प्रति क्विंटल ज्यादा देकर धान खरीदा। किसान को अपने खरीदे बोरे में धान भरनी है और वेयरहाउस तक पहुंचाना है। कंपनी ने बीच में स्वस्थ फार्मर्स प्रोड्यूसिंग कंपनी को खड़ा किया है, जिसके साथ 11 सौ किसान रजिस्टर्ड हैं। यह कंपनी डेढ़ किसानों से डेढ़ फीसदी कमीशन लेगी और उनका अनाज रिलायंस तक पहुंचाएगी। डेढ़ फीसदी कमीशन, बोरे की कीमत और वेयरहाउस तक धान पहुंचाने का खर्च निकाल दें तो किसान को एमएसपी की कीमत के बराबर ही कीमत मिलेगी पर एमएसपी से ज्यादा कीमत मिलने के हल्ले में किसान उधर भागेंगे और इस तरह मंडियों का सिस्टम कमजोर होकर धीरे धीरे खत्म हो जाएगा। जैसे जियो के हल्ले में बीएसएनएल से लेकर आधा दर्जन दूसरी संचार कंपनियों का भट्ठा बैठा।
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